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शब्दों का समल के प्रयोग वरना इससे उत्पन्न एक विडम्भना

 लेख के विषय:- शब्दों का समल  के प्रयोग वरना इससे उत्पन्न एक विडम्भना  शब्द हमारे जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा होते हैं। हमारे द्वारा बोले गए शब्द न केवल हमारे विचारों और भावनाओं को व्यक्त करते हैं, बल्कि वे हमारे व्यक्तित्व और चरित्र का भी परिचय कराते हैं। शब्दों का सही चयन और उनका सही ढंग से प्रयोग करना आवश्यक होता है, क्योंकि कभी-कभी हमारे बोले गए शब्दों का अर्थ विपरीत दिशा में ले जाया जा सकता है।  किसी भी संवाद में यह जरूरी होता है कि हम अपनी बात को सटीक और साफ ढंग से व्यक्त करें। ऐसा इसलिए क्योंकि हम यह पूर्वानुमान नहीं कर सकते कि सामने वाला व्यक्ति हमारी बातों को किस रूप में ग्रहण करेगा। एक ही वाक्य को अलग-अलग व्यक्ति अलग-अलग संदर्भों में समझ सकते हैं, और यह समझने की प्रक्रिया उनके व्यक्तिगत अनुभवों, मनोस्थिति और पूर्वाग्रहों पर निर्भर करती है। शब्दों का गलत अर्थ निकालना एक सामान्य समस्या है, जिससे कई बार संवाद में असहमति और गलतफहमी उत्पन्न हो जाती है। उदाहरण के लिए, यदि हम किसी की भलाई के लिए कोई बात कहें, तो सामने वाला व्यक्ति इसे आलोचना या अपमान के रूप में भी द...
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एक कविता पशुओं के सम्मान में :- मुझमें भी है भावना

एक कविता पशुओं के सम्मान में  कविता:-  मुझमें भी है भावना, मैं भी हूँ एक जीव, न इंसान हूँ, न कोई ख़ास, पर मेरी भी है एक आस। मुझे भी लगती है भूख, मेरे भी हैं आँसू, पर इंसान देखे तो जैसे मैं कोई बेजान जंतु। मेरे भी हैं दो हाथ, जो पंजों में हैं सजे, पर ये हाथ नहीं उठते सिर्फ़ दर्द को सहे। मुझे भी प्यास लगती है, मैं कहाँ पानी ढूँढूँ? नाले में गंदगी है, मैं साफ़ पानी कहाँ से लूँ? मुझे भी चाहिए सुकून, चाहिए जीवन का मान, क्यों तुमने बाँटा हमको, ये कैसा है इंसाफ़? मैं भी भगवान की रचना, तुम भी हो उनकी संतान, फिर क्यों ये भेदभाव, क्यों नहीं समझते इंसान? मुझे भी चाहिए प्यार, मुझे भी चाहिए सम्मान, क्यों मेरे हिस्से में आता है सिर्फ़ दर्द और अपमान? इंसान का दिल पत्थर है, या आँखें हैं अंधी, मेरे दर्द को अनदेखा कर, जैसे दुनिया ही बंधी। इंसान की क्रूरता बढ़ रही, प्रकृति का हो रहा शोषण, कैसे जियूँ मैं इस दुनिया में, जहाँ प्यार का भी है संकोच? मुझमें भी है भावना, मैं भी हूँ एक जीव, बस चाह है थोड़ी-सी इंसानियत, थोड़ी-सी सहानुभूति, मेरे भी जीवन की, थोड़ी-सी महत्ता, थोड़ी-सी ख़ुशी। लेखाक :- आयुष स...

Life an Open Book

Life An Open Book  Life Should be an open Book, nor Closed,  Cause, If Life will Be Like Open Book  then you will Never be Afraid of Anyone and from any Difficulty Everyone is Observing you, Reading you, Observing your difficulties, Reading your Capability & The ability that you have, they will help you, to overcome from it weather it may be an unknown Person or Friend, Bestfriend, Girlfriend, Family Member:- Father, Mother, Brother, Sister, Grandfather, Grandmother, Or Society member the whole World will Help you to figure out the problem & Provide Solution  In a good way